जल संरक्षण केवल सरकारी गतिविधि नहीं ?
अमित त्यागी एवं डॉ स्वप्निल यादव
सरकार की यह ज़िम्मेदारी है कि देश के प्रत्येक घर तक पानी पहुचे। हम लोकतांत्रिक देश मे रह रहे हैं और शायद इसलिए हम सरकार चुनते हैं। हम हमेशा हर चीज मे स्वयं की नैतिक ज़िम्मेदारी का जामा ओढ़कर नहीं चल सकते। हर समस्या के लिए आंदोलन का रास्ता नहीं अपना सकते। संविधान के अनुच्क्षेद-21 में प्रदूषण रहित पानी व हवा को मूल अधिकार की ही श्रेणी मे रखा गया है। इस संदर्भ मे प्रमुख वाद है। (सुभाष कुमार बनाम बिहार राज्य, 1991)। इसके साथ ही अनु0-32 मूल अधिकार को प्राप्त करने को भी एक मूल अधिकार बनाता है। अनु0-32 हमे यह ताकत देता है कि यदि हमे अपने मूल अधिकारों से वंचित किया जा रहा है तो हम जनहोत याचिका के माध्यम से उच्च न्यायालय (अनु-226) व उच्चतम न्यायालय (अनु0-32) का दरवाजा खटखटा सकते हैं। शासनादेश हमेशा पेयजल की समस्या के निदान के लिए ट्यूबवेल व हैंडपम्प की मरम्मत तथा पीने के पानी की पाइपलाइन से संबन्धित कार्यों को सर्वोच्च वरीयता प्रदान करने की बात करते हैं। परंतु जमीनी स्तर पर पाइप के जरिये हो रही जलापूर्ति के दौरान बहुत सी जगहों पर वॉटर लीकेज होने से बहुमूल्य पेयजल बरवाद होता है जिसे रोकने के कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किए जाते। अगर सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं की रिपोर्ट देखी जाये तो देश मे कुएं, ट्यूबवेल व हैंडपम्प का सही आंकड़ा मौजूद ही नहीं है। हर रिपोर्ट मे इनकी संख्या मे ज़मीन आसमान का अंतर है, जो गले से नीचे नहीं उतरता । शायद हमारी सरकारें और संस्थाएँ अपने कार्य और जिम्मेदारियों को लेकर चिंतित नहीं हैं बस खानापूर्ति करने मे जुटी हुई हैं।
राज्य एवं सरकार की यह ज़िम्मेदारी है कि पानी कि टंकियों और कुओं की सफाई करें और इनमे क्लॉरिनेशन की व्यवस्था कर कम से कम इनका पानी पीने योग्य बनाया जाये। क्यूंकि जनता जलकर अदा करती है। जिन इलाकों मे पानी कि किल्लत हो वहाँ पानी के टैंकर भर के घर-घर तक पहुंचाए जाएँ। इसके लिए स्वयं सेवी संस्थाओं कि मदद भी ली जा सकती है। देश के पहाड़ी इलाकों मे ऊंचाई पर पानी पहुचना बहुत टेढ़ी खीर है जिसके लिए सरकारों ने पाइप लाइन बिछाने कि योजनाए बनाई है परंतु इनकी चाल बहुत धीमी है । पहाड़ों के कई घर आज भी पानी कि समस्या से जूझ रहे हैं। देश के रेगिस्तानी इलाकों मे हालात और भी ज्यादा गंभीर है , वहाँ की औरतों और बच्चियों को दिन मे किलोमीटरों का सफर तय करके तथा लंबी जद्दोजहद के बाद पानी इकट्ठा करना होता है । ऐसे मे बच्चियों को शिक्षा का अधिकार उन इलाकों मे मिल पाएगा ये सवाल का विषय है। बुंदेलखंड समेत देश के कई इलाकों मे गरमियाँ आते है भू जल स्तर बहुत नीचे चला जाता है। जिससे पीने के पानी का तो छोड़िए सिंचाई व रोजमर्रा के पानी की भी किल्लत हो जाती है।
शहरी कचरे को शहर से दूर इलाकों मे डम्प किया जाता है जिससे जहरीले रसायन वहाँ के भू जल मे मिल जाते हैं और हमारा भू जल भी प्रदूषित जो जाता है। फैक्ट्रियों से निकालने वाले कचरे का जहर भी रिसकर वहाँ के भू जल को प्रदूषित करता है , जिसका दुष्प्रभाव वहाँ के लोगों और फसल मे देखा जा सकता है। सॉफ्ट ड्रिंक और मिनरल वॉटर कि फैक्ट्रिया भी उस इलाके के भू जल का अंधाधुंध दोहन करती हैं बाद मे उस इलाके का जल स्तर बहुत ज्यादा गिर चुका होता है और वो कंपनियाँ अरबों का व्यापार करके दूसरे स्थानों कि तलाश करती हैं। कई फैक्ट्रियाँ तो अपने गंदे पानी को टैंक बनाकर उसी ज़मीन मे वापस डालती है और सरकारें सब कुछ जानकार भी चुप बैठी हैं। आम नागरिक भी अनियमित और अनियंत्रित हो चुका है सबमरसिबल पम्प से लगातार धरती को दुहता चला जा रहा है। जिस पर भी सरकार कोई नियंत्रण नहीं कर पा रहीं है। रैन वॉटर हारवेस्टिंग जैसी योजनाएँ छोटे शहरों मे दम तोड़ती नजर आ रही हैं इसलिए भू जल कि पूर्ति कर पाना असंभव नजर आ रहा है। तालाबों पर मिट्टी डाल के इमारतें बना ली गयी यही विकास हुआ पिछले दशकों मे। नदियां, तालाब, कुएं दम तोड़ चुके है, पानी वापस भूमि मे जाये तो जाये कैसे। जब तक सरकारें अपने क़ानूनों, नीतियों को कठोरता से लागू नहीं करेगी कोई हल नहीं निकलेगा।
जल जीवन जरूर है परंतु जीवन जीने की ललक तो हमे ही पैदा करनी होगी। क्या अपने जीवन को बचाने के लिये हम सरकार का मुंह तांकते हैं ? क्या हम अपने स्वास्थ्य की रक्षा के लिये खुद प्रयास नहीं करते हैं ? यदि हाँ, तो फिर जल संरक्षण को हम क्यों केवल सरकारी गतिविधि मान लेते हैं। हालांकि,सरकार की अपनी भी कुछ ज़िम्मेदारी हैं फिर भी हमारे अपने प्रयास भी महत्वपूर्ण हैं। अपने बच्चों से हमारा निवेदन है कि आपको जल को संभाल के प्रयोग करना होगा और उसका संरक्षण भी करना होगा।
(लेखक द्वय जल संरक्षण के लिए कार्यरत संस्था संचयन के पदाधिकारी हैं और लेखन एवं कार्यक्रमों के माध्यम से जागरूकता अभियान चलाते रहे हैं। अमित त्यागी विधि विशेषज्ञ एवं स्तंभकार है और डॉ स्वप्निल यादव बायोलोज़ी विभागाध्यक्ष हैं।)
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