आगरा में सिर उठाकर जी रही हैं तेजाब हमले की शिकार लड़कियां

आगरा। ऐसिड अटैक में झुलसे किसी चेहरे को देखकर आपकी पहली प्रतिक्रिया शायद दया की होती होगी। ऐसिड की जलन से बुरी तरह बिगड़ गए चेहरे को देखकर आपमें से किसी का भी एकबारगी सहम जाना भी लाजमी है। दया और खौफ से आगे बढ़ने की हिम्मत जुटाना बहुत दूर की बात है, हम में कई तो इस से आगे की सोच भी नहीं पाते। इस सबसे दूर आगरा शीरोज हैंगआउट नाम का एक ऐसा रेस्तरां है जहां खाने का आपका ऑर्डर लेने से लेकर आपको खाने परोसने तक का सारा काम कुछ ऐसी युवतियां-महिलाएं करती हैं जो खुद ऐसिड हमले की शिकार रही हैं। इस रेस्तरां में आपको खाने की कीमत नहीं बताई जाती, बल्कि आप अपनी मर्जी से जो राशि सही लगे, वही कीमत चुकाने के लिए आजाद हैं।
कानपुर के आलोक दीक्षित और आशीष शुक्ला ने पहल कर इस रेस्तरां की नींव रखी। ‘स्टॉप ऐसिड अटैक’ नाम का अभियान चलाने वाली यह जोड़ी ऐसिड हमलों के शिकार पीड़ितों के लिए Chaanv नाम का फाउंडेशन चलाते हैं। फाउंडेशन केवल शुरुआती मदद और इलाज के लिए सहायता करने तक सीमित नहीं है, बल्कि इन पीड़ितों को आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें रोजगार के मौके मुहैया कराना भी इसका एक अहम मकसद है। शीरोज हैंगआउट फाउंडेशन की इसी परिकल्पना की एक कड़ी है।
नीतू जब 3 साल की थीं तब उसके पिता और रिश्तेदारों ने मिलकर उसे, उसकी बहन और मां को ऐसिड से जला दिया था। संपत्ति विवाद के कारण की गई इस कोशिश का मकसद तीनों को जला कर मारना था। नीतू की मां गीता माहौर की गलती यह थी कि उन्होंने 2 बेटियों को पैदा किया था। नीतू की बहन की हादसे के बाद मौत हो गई थी। नीतू की उम्र फिलहाल 24 साल है। वह अपनी मां के साथ शीरोज हैंगआउट कैफे में काम करती हैं। नीतू की मां गीता की उम्र 45 साल है।
रेस्तरां में काम करने वाली एक अन्य युवती रितु की उम्र 20 साल है। मूल रूप से हरियाणा की रहने वाली रितु के ऊपर संपत्ति विवाद को लेकर उसकी बुआ के बेटे ने ऐसिड हमला किया। उसके साथ अपराध में उसके 2 दोस्त भी शामिल थे। पिछले साल 23 दिसंबर को अदालत ने तीनों आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। रितु बताती हैं, ‘तकलीफ कितनी हुई यह बताना मुश्किल है। मेरा इलाज हरियाणा सरकार करा रही है। अब तक 8 ऑपरेशन हो चुके हैं। कुछ और ऑपरेशन होने अभी बाकी हैं। मेरे इलाज के पैसे तो हरियाणा सरकार दे रही है, लेकिन बाकी सारा खर्च फाउंडेशन उठाती है।’ वह बताती हैं, ‘खुशी इस बात की है कि अब मैं किसी पर निर्भर नहीं हूं। यहां काम में उलझे रहने पर बीती बातें याद कर रोने का समय ही नहीं मिलता। अच्छी लग रही है अपनी अभी की जिंदगी।’
रेस्तरां में काम करने वाली एक अन्य युवती रूपा की उम्र 22 साल है। रूपा की सौतेली मां ने कथित तौर पर जान से मारने की मंशा से उनपर ऐसिड फेंका था, लेकिन रूपा बच गईं। सौतेला मां को हालांकि डेढ़ साल जेल की सजा हुई, लेकिन बाद में वह जमानत पर रिहा हो गई। रूपा अपनी मौजूदा जिंदगी से खुश हैं।चंचल भी एक ऐसिड अटैक पीड़ित हैं। चंचल के इलाज का खर्च दिल्ली का एक एफ.एम रेडियो चैनल उठा रहा है। एक तरफा प्यार में एक युवक ने उनके ऊपर साल 2012 में ऐसिड से हमला किया था। फिलहाल उनका इलाज चल रहा है और वह रेस्तरां नहीं आ पा रही हैं। जैसे ही चंचल ठीक हो जाती हैं, वह फिर से काम करना शुरू कर देंगी।
नीतू और उनकी मां गीता का घर आगरा में ही है, लेकिन बाकी सभी अलग-अलग जगहों से हैं। इनके रहने का इंतजाम भी फाउंडेशन की ओर से किया गया है। इन सभी को अपनी जिंदगी में कई शिकायतें हैं, लेकिन इतना तो तय है कि वह आज जिस स्थिति में हैं उससे खुश हैं। इस रेस्तरां में उन्हें कोई दया की नजर से नहीं देखता। खुद के काम की बदौलत खुद की पहचान कायम करने और जिंदगी जीने के जज्बे की इन सभी की वैसे तो कोई हद नहीं, लेकिन फिलहाल यह रेस्तरां ही उनकी उम्मीदों की चारदीवारी है। अच्छी बात यह है कि इस चारदीवारी में उनपर कोई बंधन नहीं है, बल्कि इस रेस्तरां के आंगन में हर ओर इनकी आजादी की तितलियां उड़ रही हैं। शायद एक दिन ऐसी कई और जगहें होंगी जहां ऐसिड अटैक पीड़ितों के चेहरे पर मुस्कान और देखने वालों की आंखों में खालिस इंसानियत चमकेगी। उस दिन के आने तक के लिए तो शीरोज हैंगआउट इकलौता ही रहेगा।
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