जहरीली शराब, गंगा में लाशें और प्रदेश सरकार का सच
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श्यामल कुमार त्रिपाठी
गत्ï दिनों उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों में एकाएक जहरीली शराब पीकर लोग मरने लगे और इस मामले में सरकार सबके आलोचना की पात्र बन गई। तभी एकाएक जिन क्षेत्रों में जहरीली शराब से मौतें हुई थीं उन्हीं क्षेत्रों से सटे गंगा नदी में एकाएक भारी मात्रा में लाशें उतराती मिलीं। जहां प्रशासन के हाथ-पांव फूले वहीं सरकार के सामने भी अंधेरा सा होने लगा। प्रशासन ने गंगा में मिलीं लाशों को लेकर जो बात बताई वह किसी को भी हजम नहीं हो पाई। प्रशासन का यह कहना कि अक्सर ऐसा होता है यह कोई नई बात नहीं है और कम उम्र के बच्चे एवं कुंवारे लोगों को मरने के बाद न दफनाया जाता है और न ही जलाया जाता है, उन्हें गंगा में बहा दिया जाता है। प्रशासन का यह बयान जितना हास्यास्पद था उतना हीउसके लिए मुसीबत बनने लगा। प्रशासन के इस बयान ने कई सवाल खड़े कर दिए। पहला सवाल यह था कि इसके पहले गंगा में एक साथ इतनी लाशें क्यों नहीं मिलीं। सवाल नम्बर दो, अगर यह वह लाशें हैं जैसा प्रशासन कह रही है कि कुंवारे और छोटे बच्चे है तो इतनी संख्या में मिलीं लाशें सरकार और प्रशासन पर और भी गंभीर सवाल खड़े कर देते हैं। सवाल नम्बर तीन कि अगर यह वह लाशें थीं जिन्हें न जलाया जाता था, न दफनाया जाता था तो प्रशासन ने उन्हें बिना किसी जांच के स्वयं क्यों दफना दिया। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के कहने के बावजूद भी कि इतनी संख्या में मिली लाशें जांच का विषय हैं बावजूद इसके सरकार की मंशा जांच कराने के बजाय तत्काल दफनाने में क्यों थी। इन सभी सवालों का न सरकार के पास कोर्ई जवाब है और न प्रशासन के पास। कहीं ऐसा तो नहीं कि जहरीली शराब पीकर मरने वालों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि उन्हें लोगों के सामने नहीं लाया जा सकता था और इसी से बचने के लिए स्वयं प्रशासन ने ही इन लाशों को गंगा में प्रवाहित करा दिया। यह सवाल इसलिए भी उठ रहा है कि इसके पहले कभी भी इन क्षेत्रों में गंगा में इतनी भारी संख्या में शव बरामद नहीं हुए और तो और एकाएक एक तरफ इन क्षेत्रों में जहरीली शराब पीकर भारी संख्या में लोगों की मौत होने लगी और साथ ही साथ गंगा में इतनी भारी संख्या में लाशें तैरती मिलीं। आखिर सरकार ने इन उतराती लाशों की सच्चाई जानने की कोशिश क्यों नहीं की। प्रशासन ने भी सारी बातों को दरकिनार करते हुए क्यों इन लाशों को तुरंत दफना दिया। क्यों नहीं इन लाशों का पोस्टामार्टम कराया गया और क्यों नहीं गृह मंत्रालय गृह मंत्री के आदेश का पालन हुआ। कहीं न कहीं सरकार कठघरे में है बावजूद इसके न सरकार को इस बात का अफसोस है और न ही गम। गंगा में लाशों का मिलना काफी हद तक जहरीली शराब से हुई मौतों की तरफ इशारा कर रहा है। सरकार को कम से कम इस बात का तो जवाब जरूर देना चाहिए कि एकाएक और ठीक इसी समय जब इन क्षेत्रों में जहरीली शराब से लोगों की मौत हो रही थी तो गंगा में इतनी लाशें कैसे मिलीं। प्रशासन का यह बेतुका बयान कि कुंवारे लोगों की अगर मौत हो जाए तो उन्हें गंगा में प्रवाहित करा दिया जाता है। ऐसा किसी भी धर्म में नहीं होता। हां, हिन्दू धर्म में इतना जरूर है कि नव जन्मा बच्चा या बहुत ही कम उम्र में मर गया बच्चा जलाया नहीं जाता बल्कि दफना दिया जाता है। प्रशासन का बयान न तो किसी धार्मिक सोच का परिचायक था और न ही इंसानियत का। यह अलग बात थी कि इतनी संख्या में मिली लाशों के लिए प्रशासन पर सरकार का जबरदस्त दबाव था जिसके चलते बिना जांच कराए प्रशासन ने सारी लाशों को दफना दिया। उनके दफ्न होने के बाद भी सवाल तो वैसे ही खड़े रहेंगे जब तक कि प्रदेश की सपा सरकार और उनके सिपहसालार या यूं कहें कि उनके इशारों पर नाचने वाला प्रशासन यह जवाब न दे दे कि बिना जांच कराए लाशों को दफनाने का मतलब क्या था। सवाल सबसे बड़ा यह है कि 150 लाशें आखिर उन्हीं क्षेत्रों में क्यों मिलीं जहां जहरीली शराब से 50 से ज्यादा हुई मौत को लोगों ने देखा।
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