नीम करौली की तप:स्थली

कैंची में उनके पास स्टीव जाब्स आये थे. एप्पल के संस्थापक. 1973 में. सन्यास लेने. यह अनाथ स्टीव का दुर्भाग्य था या फिर संसार का सौभाग्य कि उनकी नीम करौली बाबा से मुलाकात नहीं हो पायी. जब स्टीव वहां पहुंचे तो बाबा समाधि में जा चुके थे. अगर स्टीव जाब्स सन्यास लेते तो वे दुनिया के लिए क्या करते, पता नहीं लेकिन संसार में लौटकर संसार के लिए उन्होंने जो किया उसने अकेले दम पर मानवीय सभ्यता को एक पायदान ऊपर उठा दिया है. लेकिन यह नीम करौली बाबा कौन थे जिनसे मिलकर होनहार स्टीव जाब्स सन्यासी हो जाने की तमन्ना रखते थे?
इन महाराज के बारे में करोड़ों किस्से हैं. पहली बार ऋषिकेश के आश्रम में जब उनकी फोटो दिखी थी तो उस फोटो ने मानों मन को बांध लिया हो. एक बुजुर्ग आदमी अधलेटा सा. कंबल लपेटे हुए. चेहरे पर मस्ती की चमक, मुस्कुराते हुए. मानों अभी आपको रोककर पूछ लेंगे- कैसे हो? हमारी चेतना हर वक्त अगर समग्रता में कहीं दिखती है तो वह हमारा चेहरा ही होता है. यहां तो फोटो में भी दिखनेवाला चेहरा अचेतन नहीं लग रहा था. जिस साधना मंदिर में उनकी यह तस्वीर दिखी थी, वहां लोगों से पूछा कि यह कौन हैं तो पता चला ये नीम करौली बाबा हैं.
कोई दशक भर पहले से मन के एक कोने में गहरी इच्छा समा गई थी कि किसी ऐसी जगह जाना है जहां खुद नीम करौली बाबा रह चुके हों. कोई साल भर पहले लखनऊ में थे, तो रास्ते से गुजरते हुए हनुमान सेतु पर एक बोर्ड दिखा जो नीम करौली बाबा का तपस्थली होने का दावा कर रहा था. उतरकर गोमती नदी के पेट में समा गये तो वहां एक दो कमरे और मंदिर दिखाई दिये. पता चला कि कभी कुछ दिन नीम करौली बाबा यहां भी रहकर जा चुके हैं. जिस कमरे में बाबा रहते थे वह तो बंद था लेकिन सेतु के बगल में बना हनुमान जी के मंदिर में खासी चहल पहल बता रही थी कि जरूर इस मंदिर में कुछ खास है.
लेकिन अचानक दो दिन पहले समाजवादी पार्टी वाले राजेश दीक्षित का फोन आया. वे मंगलवार को ब्राह्मण सम्मेलन करने फर्रुखाबाद में किसी ऐसी जगह जा रहे थे जहां नीम करौली बाबा ने कोई हनुमान मंदिर बना रखा है. उन्हें कुछ खास पता रहा भी होगा तो भी उन्होंने इतना ही बताया. नीम करौली बाबा का नाम आते ही न जाने क्यों लगा कि साथ जाना चाहिए. कहीं पढ़ रखा था कि खुद नीम करौली बाबा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद पैदा हुए थे. इसलिए राजेश दीक्षित के न बता पाने के बाद भी अनुमान के आधार पर यह तय करने में कोई खास दिक्कत नहीं हुई कि हो न हो, इस जगह से बाबा का कोई खास रिश्ता रहा हो. अनुमान गलत नहीं हुआ.
इंटरनेट पर नीम करौली बाबा के बारे में ढेरों जानकारियां हैं लेकिन फरुखाबाद की इस जगह के बारे में ही कोई खास जानकारी नहीं मिलती है जिसका नाम ही नीब करौरी है. नीब करौरी गंगा के कछार पर बसा एक एक गांव हैं. अकबरपुर का घर छोड़ने के बाद पंडित लक्ष्मी नारायण शर्मा इसी नीब करौरी गांव पहुंचे थे. आज तो यह ठीक से कोई नहीं बता पाता कि पंडित जी यहां कितने साल रहे लेकिन अनुमान है कि वे इस जगह पंद्रह से बीस साल रहे. अपनी समस्त साधनाएं उन्होंने इसी जगह पर पूरी की. अपने ही हाथ से बनाए माटी गोबर के हनुमान जी से ही उन्हें समस्त सिद्धियां मिलीं. पंडित लक्ष्मी नारायण शर्मा से लक्ष्मण महराज और फिर बाद में तो नीब करौरी वाले बाबा के नाम से ही लोग उन्हें जानने लगे. अंग्रेजों के समय में उनकी पहली चमत्कारिक शक्ति से आस पास के लोग तब परिचित हुए जब उनको इसी जगह पर ट्रेन कंडक्टर ने टिकट न होने के कारण ट्रेन से उतार दिया था. अभी भी लोग उस घटना का जिक्र करते हुए बताते हैं कि करीब तीन घण्टे ट्रेन खड़ी रही. तब किसी ने टीसी को बताया कि जिस बाबा को आप लोगों ने उतारा है वह जाते हुए बोलकर गया था कि अब यह ट्रेन आगे नहीं जाएगी. कहते हैं इसके बाद उनकी खोज हुई. माफी मांगी गई. तब उन्होने कहा कि हनुमान जी को नीचे उतार दोगे तो ट्रैन आगे कैसे जाएगी?
तो यही नीब करौरी वह जगह है जहां पंडित लक्ष्मी नारायण नीम करौली बाबा बन गये. इसलिए इस जगह को उनकी तपस्थली कहा जाता है. कहते हैं कि यहां आज जो हनुमान मूर्ति है वह उन्हीं के द्वारा 1915 के आस पास बनायी गयी थी. माटी और गोबर से. आज करीब सौ साल बाद भी यह मूर्ति जस की तस है. यहां एक वृक्ष है, एक गुफा है, एक कुंआ है और राख से भरा एक ऐसा ढेर है जो संभवत: नीम करौली बाबा की यज्ञशाला थी. या कि शायद वे यहां बैठकर आग तापते थे. कौन जाने? और जो कोई कुछ देता था वे इसी यज्ञशाला में डाल दिया करते थे. कहते थे कि अग्नि को दे दिया सुरक्षित रखने के लिए, जब जरूरत होगा तो वापस ले लेंगे. यह कोई मजाक नहीं है. इसे चमत्कार मानें तो मानें लेकिन वे अग्नि देवता से वस्तुएं मांगते भी थे. जो जरूरत होती थी वह अग्निदेवता से मिल जाता था. आग में हाथ डालकर वे जो इच्छा करते थे, वह उनके हाथ में आ जाती थी. आग से निकालकर कई बार कई सारी चीजें उन्होंने लोगों को दे दी थीं. संभवत: जिस विशाल कुंड को ढंक दिया गया है उसमें वही अक्षय निधि आज भी सुरक्षित है.
आगे तो नीम करौली बाबा चमत्कार के ही दूसरे नाम हो गये. देश में जहां भी जाते कोई न कोई चमत्कार हो जाता. जो लोगों के लिए चमत्कार होता था वह नीम करौली बाबा के लिए सामान्य कर्म था. कोई ऐसा सामान्य कर्म जिसके बारे में जानने के लिए विज्ञान को अभी न जाने कितने लार्ज हार्डन कालिडर टनल बिछाने होगे. पंचमहाभूत को भेदने की वैज्ञानिक विधियां ही हमारी नजर में चमत्कार हो जाती हैं. भौतिक पदार्थ में ही अगर इतने सारे चमत्कार भरे पड़े हैं तो कल्पना करिए कि अभौतिक जगत कितने सारे रहस्यों को अपने में समेटे हुए होगा? नीम करौली बाबा ऐसे ही अभौतिक रहस्यों में से कुछ को प्रकट कर देते थे. लेकिन इसका मतलब यह शायद बिल्कुल नहीं है कि इन चमत्कारों के जरिए वे अपना भौगोलिक विस्तार कर रहे थे. हकीकत तो यह है कि अपने जीते जी उन्होंने नैनीताल के कैंची आश्रम के अलावा और कोई आश्रम नहीं बनने दिया. वे जानते थे कि वे क्या हैं शायद इसीलिए उन्होंने अपनी ओर से अपना विस्तार करने की कोई चेष्टा नहीं की.
आश्चर्य होता है कि आज इक्कीसवीं सदी में जब नीम करौली बाबा एक किंवदंती बन गये हैं तो भी हम लगभग उस जगह के बारे में बिल्कुल अनजान हैं जहां पंडित लक्ष्मी नारायण से नीम करौली बाबा का जन्म हुआ. कहते हैं यहीं पर उन्हें राम भी मिले और हनुमान भी. हो सकता है नास्तिकों को ये बातें कुछ नागवार गुजरें लेकिन आस्तिक नास्तिक कुछ होता नहीं है. जिसकी पहुंच जहां तक है वह वहीं से संसार को पकड़ने लगता है. कुछ तो अपने अनुभव लिखते हैं कि न जाने कितनी बार उन्होंने महाराज जी को हनुमान जी के रूप में देखा था. कहते तो यह भी हैं कि उनके भक्त उनको महाराज जी कहते ही इसलिए थे क्योंकि वे हनुमत स्वरूप थे. यहां नीब करौरी से निकलकर अगले कुछ दशकों तक बाबा देशभर में घूमते रहे. घुमाई फिराई के दौरान भी उनका ज्यादातर वक्त कैंची में बीता लेकिन यहां दो बातें विशेष रूप से जानने लायक हैं। एक, वे कभी विदेश नहीं गई गये लेकिन देश से ज्यादा उनके भक्त और अनुयाई विदेशों में हैं. दो, उन्होंने अपने रहते कोई आश्रम नहीं बनाया लेकिन आज उनके नाम पर सौ से ज्यादा आश्रम सेवा के लिए पूरी दुनिया में संचालित हो रहै हैं.
कैंची में रहते हुए जो उनके पास पहुंच गया वह तो चमका ही. उनके चमत्कारों के किस्से भी खूब चमके. देशभर से लोग आते थे वहां. ऐसे ही इलाहाबद से भी कुछ लोग आये थे. उनसे मिलने के लिए. चार लोग थे. आश्रम में आये और बीमार पड़ गये. बाबा तक खबर गई तो उन्होंने कहा कि इन लोगों का अंत समय आ गया है. लेकिन कोई बात नहीं. जब आश्रम में आ गये हैं तो उनकी चिंता करना हमारा धर्म है. इसके बाद खुद बाबा उनके बीच जाकर लेट गये और उठे तो उनका शरीर बुखार में तप रहा था. इसके बाद उन्होंने पता किया कि शरीर छोड़ने के लिए कहां जाना चाहिए. पंडित ने कहा या तो काशी जाना चाहिए, नहीं तो फिर वृन्दावन. काशी बहुत दूर था. इतना समय उनके पास नहीं था. इसलिए आनन फानन में वे काठगोदाम आये और वहां से ट्रेन से दिल्ली होते हुए मथुरा पहुंच गये. रास्ते से अपने बेटे को भी बुलवा लिया था ताकि वह अंतिम संस्कार कर सके. मथुरा स्टेशन पर पहुंचते ही रात के 12 बजे के बाद जैसे ही चतुर्दशी की घड़ी आई उन्होंने शरीर का साथ छोड़ दिया.
लेकिन चमत्कारों के सरकार नीम करौली बाबा को अगर सिर्फ चमत्कार मान लेंगे तो भारत का आध्यात्म हमें कभी समझ में नहीं आयेगा जो बुद्धि से गहरे भाव जगत पर तैरता है. प्रकृति को जानने, समझने और उपलब्ध हो जाने की जो विद्या भारत में अभी भी मौजूद है वह आखिर में किसी हिग्स बोसोन पर जाकर नहीं रुकती. पदार्थ को विखंडित करके पदार्थ को पा लेने और उसे परिभाषित कर देने की विद्या विज्ञान है. लेकिन जो पदार्थ नहीं है, वह? पच्छम के वैज्ञानिकों ने अभी अभी पाया है कि वह पदार्थ में भार निर्मित करता है. जो भार निर्मित करता है वह खुद भार है या निर्भार? अगर भार तो भगवान भला कैसे और अगर निर्भार है तो वह क्या है? अगर अमर्त भार निर्मित करता है तो अमर्त्य के मर्त्य से अलग हो जाने के बाद वह अधिक भारवान क्यों हो जाता है? अगर अमर्त्य में कोई भार नहीं है तो उसको (एचओ) कहकर कैसे परिभाषित किया जा सकता है? ये ऐसे पेंचीदे सवाल हैं जो अगले कई दशकों या फिर सदियों तक मनुष्य के मन को सालते रहेंगे. नीम करौला बाबा जैसे महर्षि उस सत्ता और सत्य को उपलब्ध हुए जो हमारी वैज्ञानिक दुनिया का हिग्स बोसोन है तो इसके लिए उन्हें करोड़ों अरबों के उपकरणों की जरूरत महसूस नहीं हुई. साढे तीन हाथ का शरीर संसार की सबसे बड़ी और कीमती प्रयोगशाला है. इस प्रयोगशाला में पहुंचने और पिंड से ब्रह्मांड को भेदने का विज्ञान ही भारत का वह चमत्कार है जिससे वे खुद अनजान है जो इसके वंशज हैं.
यह छोटा सा गांव नीब करौली भी कुछ उसी तरह की प्रयोगशाला रहा है जैसा यूरोप में बनाई गई वह टनल जिस पर अरबों डालर खर्च किये गये. लेकिन हाय से हमारी फूटी किस्मत कि हम उस प्रयोगशाला को देख पाने की दृष्टि भी खोते जा रहे हैं जिससे सृष्टि का उद्भव और विकास हुआ है. इस नीब करौरी में आने पर यही महसूस होता है कि अतीत के ऋषियों, महर्षियों, वेदों और उपनिषदों में ही अटके रहने की जरूरत नहीं है. हमारे वर्तमान में भी इतना अंधेरा नहीं है कि छोटी छोटी जानकारियों के लिए भी हम बार बार घूम कर पश्चिम की ओर ही निहारते रहें. स्टीव जाब्स ने जिस तकनीकि का प्रयोग करके मानवता को सभ्यता के अगले पायदान पर जा खड़ा किया, उस तकनीकि और इस तकनीकि में कोई अंतर नहीं है. नीम करौली बाबा ने जो किया और अमूर्त रूप में अभी भी जो कुछ कर रहे हैं, कम से कम उनके प्रभाव क्षेत्र में रहनेवाले लोग तो इसे अनुभव कर ही रहे हैं.
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