स्कूली बच्चों की थाली से भी गायब हुई दाल

मिड डे मील अथॉरिटी के मेन्यू के हिसाब से प्राइमरी बच्चों को खाना दिया जाता है। इसमें सोमवार को रोटी-सब्जी जिसमें सोयाबीन या दाल की बड़ी का इस्तेमाल हो, मंगलवार को चावल और सब्जी युक्त दाल या चावल सांभर, और गुरुवार को रोटी-सब्जीयुक्त दाल दिया जाना है। हालांकि, दालों की लगातार बढ़ती कीमतों ने मुश्किलें बढ़ा दी हैं। एनजीओ का कहना है कि आमतौर पर एक बच्चे के मिड डे मील पर करीब साढ़े चार रुपए कंवर्जन कॉस्ट आता है, जो इतनी महंगाई में संभव नहीं है।
इस महंगाई के पीछे जो कारण सामने आए हैं वो बेहद चौंकाने वाले हैं। केंद्र सरकार की इम्पोर्ट की गई दाल की खेप को राज्य सरकारों ने उठाने से मना कर दिया है। इन राज्यों में यूपी सरकार भी शामिल है। एक तरफ दहलन की फसल अच्छी नहीं होने से दाल की कीमतें बढ़ गई हैं, तो वहीं इसे कम करने की सभी कोशिशों पर राजनीति ने पानी फेर दिया है। केंद्र सरकार ने दाल की कीमतों पर लगाम लगाने के लिए पांच हजार टन उड़द का जो ग्लोबल टेंडर जारी किया था, उसे राज्य सरकारों की बेरुखी के चलते रद्द करना पड़ा है। वहीं, यूपी सरकार के अधिकारी केंद्र से दी जाने वाली दाल की खेप को ऊंट के मुंह में जीरा बता रहे हैं।
पहले हामी भरी, फिर मुकर गई राज्य सरकारें
बीते दिनों ये बात साफ हो गई कि मौसम की मार के चलते दलहन की पैदावार में भारी कमी आई है। इसकी वजह से घरेलू बाजार में दाल की कीमतों में तेजी आ गई। इस पर लगाम लगाने के लिए केंद्र सरकार ने बाजार में दाल की सप्लाई बढ़ाने का फैसला किया। इसके लिए केंद्र सरकार के अधिकारियों ने सभी राज्यों के सम्बन्धी अधिकारियों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए दाल के आयत के लिए सहमति मांगी। पहली वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में देश के लगभग सभी राज्यों ने कीमतों पर लगाम लगाने के लिए दालों के आयत को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने का समर्थन किया। इस बीच केंद्र सरकार ने शुरुआती बातचीत के आधार पर पांच हजार टन उड़द इम्पोर्ट करने का ग्लोबल टेंडर जारी कर दिया। लेकिन जब केंद्र सरकार की राज्यों से बात हुई तो राज्य सरकारों ने उड़द की दाल लेने से साफ मना कर दिया। यही नहीं चेन्नई और मुंबई पोर्ट पर पहुंची अरहर को उठाने से भी ज्यादातर राज्य सरकारों ने इनकार कर दिया।
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