फिर से निकल रही है एक रथयात्रा, क्या वाकई धर्म खतरे में आ गया है

रथयात्रा पर बात करने से ये जान लेते हैं, सोलहवीं सदी में अपनी महाकाव्यात्मक और कालजयी रचना ‘रामचरितमानस’ में राम सहित कई अमर चरित्रों के जरिये एक बेहद रोमांचक और रोचक कथानक बुनने वाले महाकवि गोस्वामी तुलसी दास को अपने जीवन-काल में शायद ही कभी हल्का सा भी आभास रहा हो कि उनके केंद्रीय चरित्र राम को लेकर कई शताब्दी बाद लोकतांत्रिक भारत की राजनीति में इतना सारा प्रपंच रचा जायेगा! यही सही है कि उनसे बहुत पहले बाल्मीकि ने राम के चरित्र को लेकर अपनी रामायण की रचना की थी। तब से अब तक राम की अनेक कथाएं और उन पर केंद्रित दर्जनों रचनाएं प्रकाश में आ चुकी हैं। इनमेें कुछेक रचनाएं राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में न दिखाकर एक आम राजा की तरह भी पेश करती हैं। कुछ में उनके राज की तीव्र आलोचना भी है। लेकिन उत्तर भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय रामकथा तुलसी दास के रामचरितमानस के रूप में ही सामने आती है, जिसमें उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में चित्रित किया गया है। तुलसी के राम मानव-मूल्यों के रक्षक हैं। वह एक आदर्श राजा हैं और राज-पाट संभालने से पहले वह आतताइयों से लड़ने वाले एक योद्धा भी हैं। पर कैसी विडम्बना है कि उनके नाम पर स्वतंत्र, लोकतांत्रिक और सेक्युलर संविधान-धारी भारत में अब तक न जाने कितनी बार सांप्रदायिक तनाव और टकराव पैदा किये गये और इनमेें अनेक निर्दोषों की जानें गईं।

दूसरे धर्मावलंबियों का एक उपासना-स्थल तोड़ा गया। राम के जन्म-स्थान के उस खास भूखंड की जानकारी रामकथा के जनक बाल्मीकि और तुलसी को भी नहीं थी, पर आज के कुछ ‘हिन्दुत्वा संगठनों’ और कुछेक राजनीतिक पार्टियों को जरूर है! अतीत की तह में जाकर उन्होंने खोज लिया कि राम कहां, राजमहल के किस कक्ष और उसके किस कोने में पैदा हुए थे! उस खास स्थान पर भव्य मंदिर बनाने के लिये अब फिर एक नयी रथयात्रा निकल रही है। इसका नाम हैः रामराज्य रथ यात्रा। इस बार मुख्य रथयात्री लालकृष्ण आडवाणी जैसा भाजपा का कोई बड़ा नेता नहीं है। इस बार महाराष्ट्र स्थित एक कथित धार्मिक संगठन श्री रामदास मिशन यूनिवर्सल सोसायटी और विश्व हिन्दू परिषद जैसे संगठनों के नेता इसके मुख्य रथयात्री हैं। बीते मंगलवार को अयोध्या में इसका विधिवत उद्घाटन हुआ। विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री ने झंडी दिखाकर इसे रवाना किया। दिलचस्प बात है कि यह यात्रा कर्नाटक सहित कुछ अन्य राज्य विधानसभाओं के चुनाव से ऐन पहले शुरू की गई है।

देश में सन् 2019 के पूर्वार्द्ध में लोकसभा के भी चुनाव होने हैं। यह महज संयोग नहीं कि यात्रा का मार्ग इस तरह तय किया गया है कि विधानसभा चुनाव वाले कुछ महत्वपूर्ण राज्यों से होते हुए यह यात्रा गुजरे। ऐसे राज्यों में मध्य प्रदेेश, कर्नाटक और केरल प्रमुख हैं। पता चला है कि कर्नाटक और केरल जैसे राज्यों से गुजरने के लिये यात्रा के आयोजकों ने अभी तक कोई आधिकारिक मंजूरी नहीं ली है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि यात्रा के मार्ग को लेकर कहीं बड़ा बावेला तो नहीं मचेगा? दूसरा सवाल भी बेहद प्रासंगिक है। हाल ही में एक यात्रा के नाम पर यूपी के कासगंज में सांप्रदायिक दंगा हो गया, जिसमें कथित तिरंगा यात्रा के एक आयोजक की गोली लगने से मौत हो गई। अब तक साफ नहीं हो सका कि वह किसकी गोली से मारा गया। कुछ लोग घायल हुए। 26 जनवरी के दिन एक यात्रा के चलते कासगंज का खुशहाल माहौल तनाव और टकराव से उत्पन्न मातम और मायूसी में डूब गया। अतीत की आडवाणी रथयात्रा तो अब इतिहास का हिस्सा है। उसके पहले और बाद में देश के कई हिस्सों में भारी तनाव पैदा हुआ।

दंगे हुए और कइयों की जान गई। बाद में अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद को जबरन ढहा दिया गया और सुरक्षा एजेंसियां देखती रह गईं। क्या गारंटी है कि राम मंदिर के नाम पर आयोजित यह नयी रामराज्य रथ यात्रा समाज के सद्भाव और शांति-व्यवस्था को नहीं तोड़ेगी? ऐसी यात्राओं का अब तक का इतिहास बहुत आश्वस्तकारी नहीं है। इस रामराज्य रथ यात्रा का असर देखा जाना अभी बाकी था कि बुधवार को दिल्ली से एक और रथयात्रा निकाली गई। हरी झंडी के बजाय भगवा झंडा दिखाकर इसे देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इंडिया गेट से रवाना किया। दूसरी रथयात्रा का नाम हैः जल-मिट्टी रथ यात्रा। देश के कोने-कोने से यह रथ-यात्रा जल और मिट्टी लेकर फिर दिल्ली आयेगी, जहां 18 से 25मार्च के बीच लालकिले पर महायज्ञ होगा। महायज्ञ का नाम हैः राष्ट्र रक्षा महायज्ञ। समझ मे नहीं आता, क्या इस रथयात्रा और महायज्ञ के आयोजकों को भारत की महान् सेना और अर्द्धसैनिकों बलों की ताकत पर राष्ट्र-रक्षा का भरोसा नहीं है कि किसी महायज्ञ से राष्ट्र की रक्षा की बात सोच रहे हैं! क्या यह बेहतर नही होता कि ये तमाम रथयात्री अपने-अपने इलाकों में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, पर्यावरण-संरक्षण और स्वच्छता आदि के क्षेत्र में काम करते।

(वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार उर्मिलेश उर्मिल के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
 

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