रूस और भारत: 70 साल से साथ

लेखक: व्लादीमिर पूतिन।।
इस वर्ष हम एक ऐसी घटना की सालगिरह मना रहे हैं, जिसे वास्तविक तौर पर ऐतिहासिक कहा जा सकता है। सत्तर साल पहले यानी 13 अप्रैल, 1947 को यूएसएसआर और भारत की सरकारों ने मॉस्को और दिल्ली में सरकारी मिशन स्थापित करने का फैसला किया। यह भारत अपनी आज़ादी हासिल करने तथा इसकी स्वतंत्रता को मजबूत बनाने में सहायता देने की दिशा में एक और कदम के रूप में आया।

इसके बाद के दशकों में हमारी द्विपक्षीय भागीदारी और बढ़कर मजबूत हो गई है, और इसे कभी भी राजनीतिक सुविधा का विषय नहीं बनाया गया। दोनों देशों के समान और आपस में लाभकारी संबंध लगातार विकसित हुए हैं। यह काफी स्वाभाविक है। हमारे लोगों को एक दूसरे के आध्यात्मिक मूल्यों और संस्कृति के लिए हमेशा सहानुभूति रही है, सम्मान रहा है। हमने जो हासिल किया है, आज उसके बारे में हम गर्व कर सकते हैं। रूस की तकनीकी और वित्तीय सहायता से भारत में औद्योगीकरण के ये अगुआ अस्तित्व में आए : भिलाई, विशाखापट्टनम और बोकारो में मेटलर्जिकल कॉम्प्लेक्स, दुर्गापुर में माइनिंग इक्विपमेंट प्लांट, नेवेली में थर्मल पावर स्टेशन, कोरबा में इलेक्ट्रोमकैनिकल एंटरप्राइज, ऋषिकेश में ऐंटीबायोटिक प्लांट और हैदराबाद में फार्मास्यूटिकल प्लांट।
हमारे देशों ने अगस्त 1971 में शांति, मैत्री और सहयोग की संधि पर साइन किए, जो द्विपक्षीय संबंधों के मूलभूत सिद्धांतों को आगे बढ़ाती है। मसलन, संप्रभुता के प्रति सम्मान और एक दूसरे के हितों का ध्यान रखना, अच्छा पड़ोसी बनना और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व कायम करना। 1993 में, रूसी संघ और भारत ने शांति,मैत्री और सहयोग की नई संधि में इन बुनियादी सिद्धांतों के जरूरी होने की पुष्टि की। सामरिक साझेदारी पर साल 2000 में संपन्न के घोषणापत्र ने अपने-अपने नजरिये में तालमेल बिठाने का मौका दिया, जिससे अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा सुनिश्चित हो सके और अटके पड़े ग्लोबल और क्षेत्रीय मुद्दों को सुलझाया जा सके। रूस-भारत द्विपक्षीय संबंधों में वार्षिक शिखर बैठक अब एक स्थापित परंपरा है, जिससे लक्ष्यों को पूरा करने के लिए किए गए प्रयासों पर समयबद्ध तरीके से चर्चा का मौका मिलता है। साथ ही हम दीर्घकालिक लक्ष्यों को तय कर पाते हैं। जून की शुरुआत में हम सेंट पीटर्सबर्ग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक और शिखर सम्मेलन करेंगे। उनके सेंट पीटर्सबर्ग इंटरनैशनल इकनॉमिक फोरम में भाग लेने की उम्मीद है, जिसमें भारत पहली बार पार्टनर कंट्री के रूप में भाग लेगा।सोवियत, और बाद में रूसी वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों ने भारत में रिसर्च और शिक्षा केंद्रों की स्थापना में भाग लिया। इनमें बॉम्बे में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी, देहरादून और अहमदाबाद में पेट्रोलियम इंडस्ट्री के रिसर्च इंस्टिट्यूट शामिल हैं। हमें गर्व है कि हमारे विशेषज्ञों ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को विकसित करने में मदद की। इस फलदायी द्विपक्षीय सहयोग के कारण 1975 में भारत का पहला उपग्रह आर्यभट्ट लॉन्च किया गया था। भारतीय नागरिक राकेश शर्मा 1984 में सोयुज टी-11 के चालक दल के सदस्य के रूप में स्पेस में गए थे।

250 से अधिक दस्तावेजों वाले कानूनी ढांचे को नियमित आधार पर अपडेट किया जा रहा है। व्यापार और अर्थव्यवस्था, विज्ञान और टेक्नॉलजी, संस्कृति और सैन्य-तकनीकी क्षेत्र में सहयोग पर अंतर सरकारी आयोगों के दायरे में असरदार काम किया जा रहा है। विदेशी मामलों के मंत्रालय, सुरक्षा परिषद कार्यालय और संबंधित मंत्रालय लगातार संवाद बनाए रखते हैं। अंतरसंसदीय और अंतरक्षेत्रीय संबंधों के साथ व्यापार और मानवीय संपर्क का विकास सक्रिय तरीके से हो रहा है। सैन्य सहयोग भी बढ़ाया जा रहा है। जमीनी और नौसैनिक संयुक्त अभ्यास नियमित रूप से आयोजित किए जाते हैं।

परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग में सहयोग रूस और भारत के बीच के रिश्तों के मूलभूत तत्वों में से एक है। हमारी सहायता से कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र का निर्माण इस क्षेत्र में फ्लैगशिप परियोजना है। 2013 में पहली परमाणु ऊर्जा इकाई का ऑपरेशन शुरू हुआ था। अक्टूबर 2016 में दूसरी इकाई को भारत को सौंपा गया था। तीसरी और चौथी बिजली इकाइयों का भी निर्माण शुरू हुआ। इन सबसे भारत में परमाणु ऊर्जा के विकास की योजनाओं पर अमल में लाने में मदद मिल रही है, जिनके तहत 2020 तक भारत में कम से कम 12 बिजली इकाइयों का निर्माण किया जाना है। इन लक्ष्यों को एक जॉइंट डॉक्युमेंट में तय किया गया है। यह डॉक्युमेंट है – परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग में रूस-भारत सहयोग को मजबूत बनाने का स्ट्रैटिजिक विजन।

हमारी तत्परता है कि इस महत्वपूर्ण उद्योग में हम बेहतरीन अनुभव को भारत के साथ साझा करते रहेंगे और भारत की ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाने के लिए योगदान देते रहेंगे।

पारंपरिक ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग सफलतापूर्वक विकसित हो रहा है। भारतीय कंपनियों के संघ ने रूसी कंपनी ‘वानकोर्नेफ्ट’ में शेयरों के एक ब्लॉक की खरीद की, जो तेल उद्योग में सबसे बड़ी द्विपक्षीय डील बन गई। रूसी आर्कटिक क्षेत्र में हाइड्रोकार्बन की मिलकर खोज करने और उत्पादन परियोजनाओं में भारतीय कंपनियों की भागीदारी की संभावनाओं पर फिलहाल विचार हो रहा है। मौजूदा पावर प्लांटों के आधुनिकीकरण और नए पावर प्लांट बनाने के साथ सौर ऊर्जा में सहयोग के लिए भी अच्छी संभावनाएं हैं। मकैनिकल इंजिनियरिंग, रसायन और खनन उद्योग, विमान बनाने, फॉर्मास्युटिक्स और दवाओं में बड़े पैमाने पर परियोजनाएं चलाई जा रही हैं।

हमारी प्राथमिकताओं में से एक यह है कि आपसी व्यापार का टर्नओवर बढ़ाया जाए और इसकी संरचना में सुधार किया जाए। साथ ही साथ हमारे व्यापारिक समुदायों की आर्थिक गतिविधि को प्रोत्साहित किया जाए। मैं औद्योगिक सहयोग और उच्च तकनीक वाले उत्पादों की सप्लाई बढ़ाने, व्यवसाय और निवेश का बेहतर माहौल बनाने, राष्ट्रीय मुद्राओं में भुगतान की व्यवस्था का इस्तेमाल करने की बात कर रहा हूं। यूरेशियन इकनॉमिक यूनियन और भारत के बीच फ्री ट्रेड एरिया अग्रीमेंट पर दिसंबर 2016 में बातचीत शुरू करने के फैसले का विशेष महत्व है। इंटरनैशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर बनाने की संभावनाओं का पता लगाया जा रहा है। इन सभी बातों से हमारे द्विपक्षीय और क्षेत्रीय सहयोग के विकास को बढ़ावा मिलना चाहिए।

दोनों तरफ से पूंजी के प्रवाह को बढ़ावा देने की खातिर प्राथमिकता वाली निवेश परियोजनाओं पर वर्किंग ग्रुप बनाया गया था। यह काम व्यापार, आर्थिक,वैज्ञानिक, तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग के लिए बने अंतर-सरकारी आयोग के तहत किया जा रहा है। इसके तहत 19 सबसे आशाजनक परियोजनाओं का चयन पहले ही किया जा चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शुरू किए गए “मेक इन इंडिया” कार्यक्रम में दीर्घकालिक भागीदारी के लिए रूस प्रतिबद्ध है।

बहुउद्देशीय हथियारों और सैन्य उपकरणों के उत्पादन में हमारे देश सघन सहयोग करते हैं। अद्वितीय सुपरसॉनिक क्रूज मिसाइल का “ब्रह्मोस”  को मिलकर बनाना हमारा विशेष गौरव है। सैन्य और तकनीकी सहयोग के ढांचे के भीतर 1960 के बाद से अब तक 65 अरब डॉलर से ज्यादा के कॉन्ट्रैक्ट हो चुके हैं। ऑर्डर का पोर्टफोलियो 2012 से 2016 के बीच 46 अरब डॉलर से अधिक हो गया है। अंतरराष्ट्रीय मामलों में रूस और भारत बराबर सहयोगी हैं। हमारे देश अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बहुध्रुवीय लोकतांत्रिक प्रणाली का समर्थन करते हैं, जिसमें कानून के सिद्धांतों के साथ कड़ाई से पालन हो और संयुक्त राष्ट्र की केंद्रीय भूमिका हो। हम इसके लिए तैयार हैं कि इक्कीसवीं सदी की चुनौतियों और खतरों का और मिलकर मुकाबला करें, एकजुटता के अजेंडे को बढ़ावा दें और ग्लोबल और क्षेत्रीय सुरक्षा को बनाए रखने में योगदान दें।

हम BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, साउथ अफ्रीका) के दायरे में प्रभावी ढंग से बातचीत करते हैं। हमारे सामूहिक प्रयासों से यह एक ऐसा संगठन बन गया है, जिसका वजन और प्रभाव बढ़ रहा है। इस जून में भारत शंघाई सहयोग संगठन का पूर्ण सदस्य बन जाएगा। इससे शंघाई सहयोग संगठन की क्षमता काफी बढ़ेगी। जी-20 और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी रूस और भारत मिलकर काम करते हैं। मैं इस बात को भी नोट करना चाहूंगा कि सीरिया में स्थिति सुलझाने, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका क्षेत्र में स्थिरता सुनिश्चित करने जैसे जटिल मुद्दों पर दोनों देश अपने रुख में करीबी तालमेल रखते हैं। दोनों अफगानिस्तान में राष्ट्रीय सुलह प्रक्रिया में काफी योगदान देते हैं।

मुझे विश्वास है कि दो महान शक्तियों के बीच सहयोग की विशाल क्षमता को और खंगाला जाएगा, ताकि रूस और भारत के लोगों के साथ सामान्य तौर पर पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय को लाभ मिल सके। हमारे पास इसे हासिल करने के लिए जरूरी सब कुछ है – दोनों पक्षों की राजनीतिक इच्छा है, आर्थिक क्षमता है और एक जैसी ग्लोबल प्राथमिकताएं हैं। इन सबका आधार रूस-भारत की दोस्ती का गौरवशाली इतिहास है। इस मौके पर मैं मित्र भारत के सभी नागरिकों को शुभकामनाएं देता हूं।

सभार : navbharattimes.indiatimes.com

 

 

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